Glimpses of India in Hindi Explanation, This page has the line by line explanation of the ncert class 10th English first flight chapter seven Glimpses of India in Hindi. Glimpses of India in Hindi Explanation
7. Glimpses of India (भारत की झलक)
I : A BAKER FROM GOA
This is a pen-portrait of a traditional Goan village baker who still has an important place in his society.
यह एक पारंपरिक गोआन गाँव नानबाई (बेकर) का लेखा–चित्र है जिसका अपने समाज में अब भी महत्वपूर्ण स्थान है।
Our elders are often heard reminiscing nostalgically about those good old Portuguese days, the Portuguese and their famous loaves of bread. Those eaters of loaves might have vanished but the makers are still there. We still have amongst us the mixers, the moulders and those who bake the loaves. Those age–old time–tested furnaces still exist. The fire in the furnaces has not yet been extinguished. The thud and jingle of the traditional baker’s bamboo, heralding his arrival in the morning, can still be heard in some places. May be the father is not alive but the son still carries on the family profession. These bakers are, even today, known as pader in Goa.
हमारे पुर्खो को प्रायः उन अच्छे पुराने, पुर्तगालियों के लिये, पुर्तगालियों तथा उनकी प्रसिद्ध डबलरोटियों के बारे में असत्य भाव से विचार करते हुए सुना जाता है। उन डबल– रोटियों के खानेवाले भले ही विलुप्त हो गए हैं किन्तु उनको बनाने वाले अब भी हैं। हमारे बीच अब भी मिश्रण–यंत्र, संचक तथा वे जो डबल- रोटियाँ बनाते थे मौजूद हैं। वे पुराने समय की परीक्षित भट्ठियाँ अब भी विद्यमान हैं। भट्ठियों की आग अभी भी बुझी नहीं है । पारंपरिक नानबाई के बाँस का शोर तथा झनझनाहट जो प्रातः उसके आगमन को सूचित करता था, अब भी कुछ स्थानों में सुना जा सकता है। चाहे पिता जीवित नहीं है किन्तु बेटा अब भी परिवार के व्यवसाय को चलाता है। ये नानबाई आज भी गोआ में पादर के रूप में जाने जाते हैं।
During our childhood in Goa, the baker used to be our friend, companion and guide. He used to come at least twice a day. Once, when he set out in the morning on his selling round, and then again, when he returned after emptying his huge basket. The jingling thud of his bamboo woke us up from sleep and we ran to meet and greet him. Why was it so? Was it for the love of the loaf? Not at all. The loaves were bought by some Paskine or Bastine, the maid–servant of the house! What we longed for were those bread-bangles which we chose. carefully. Sometimes it was sweet bread of special make.
गोआ में हमारे बचपन के दिनों में, बेकर ( नानवाई ) हमारे मित्र, साथी तथा मार्गदर्शक हुआ करते थे। वह दिन में कम–से–कम दो बार आता था। एक बार तब जब वह प्रातः अपनी बिक्री के दौरे पर निकलता था, और फिर दोबारा, जब वह अपनी बड़ी टोकरी को खाली करने के बाद लौटता था। उसके बाँस की झनझनाहट की आवाज हमें नींद से जगा देती थी और हम उससे मिलने तथा उसका अभिनन्दन करने के लिए दौड़ पड़ते थे। ऐसा क्यों होता था? क्या ऐसा डबलरोटी के प्रेम हेतु था ? बिल्कुल नहीं। डबल–रोटी कुछ पास्काइन तथा बास्टाइन द्वारा खरीदी जाती थीं, जो घर की नौकरानी होती थीं। जिनकी हम इच्छा करते थे वह डबल रोटी के बंद होते थे जिनका हम सावधानीपूर्वक चयन करते थे। कभी–कभी यह विशेष प्रकार से निर्मित मीठी डबल–रोटी होती थी।
The baker made his musical entry on the scene with the ‘jhang, jhang’ sound of his specially made bamboo staff. One hand supported the basket on his head and the other banged the bamboo on the ground. He would greet the lady of the house with ‘Good morning’ and then place his basket on the vertical bamboo. We kids would be pushed aside with a mild rebuke and the loaves would be delivered to the servant. But we would not give up. We would climb a bench or the parapet and peep into the basket, somehow. I can still recall the typical fragrance of those loaves. Loaves for the elders and the bangles for the children. Then we did not even care to brush our teeth or wash our mouths properly. And why should we? Who would take the trouble of plucking the mango–leaf for the tooth–brush? And why was it necessary at all? The tiger never brushed his teeth. Hot tea could wash and clean up everything so nicely, after all !
नानबाई अपने विशेष रूप से बने हुए बांस के डंडे की झिनझिनाहट की आवाज के साथ रंगमंच पर संगीत की ध्वनि से प्रवेश करता था। उसका एक हाथ सिर पर रखी टोकरी को सहारा देता था और दूसरा धरती पर बाँस को बजाता था। वह घर की मालकिन को प्रातः का नमस्कार’ कहकर उसका अभिनन्दन करता था और फिर अपनी टोकरी को सीधे बाँस पर टिका देता था। हल्की डाँट के साथ हमारे जैसे छोटे बालकों को एक तरफ धकेल दिया जाता था और डबल–रोटी नौकर को दे दी जाती थी। किन्तु हम हार नहीं मानते थे। हम बेंच या दीवार पर चढ़ जाते थे और टोकरी में झाँकते थे, किसी–न–किसी प्रकार से। मैं अब भी उन डबल रोटियों की गंध को याद करता हूँ। बड़ों के लिए डबल– रोटियाँ तथा बच्चों के लिए बंद। उस समय हम अपने दाँतों को खुश करने तथा अपने मुँह को ढंग से साफ करने की परवाह नहीं करते थे और हम करते भी क्यों? दाँतों को खुश करने के लिए आम के पत्तों को तोड़ने का कौन कष्ट करेगा? और यह सब आवश्यक भी क्यों था? शेर अपने दाँतों को कभी खुश नहीं करता । अन्ततः गर्म चाय, हर चीज को अच्छी तरह से धो तथा साफ कर देगी।
Marriage gifts are meaningless without the sweet bread known as the bol, just as a party or a feast loses its charm without bread. Not enough can be said to show how important a baker can be for a village. The lady of the house must prepare sandwiches on the occasion of her daughter’s engagement. Cakes and bolinhas are a must for Christmas as well as other festivals. Thus, the presence of the baker’s furnace in the village is absolutely essential.
विवाह के उपहार बिना मीठी डबलरोटी, जो ‘बोल’ के नाम से जानी जाती है, के व्यर्थ हैं; जैसे कि एक पार्टी या प्रीतिभोज बिना डबलरोटी के अपना आकर्षण खो देता है। इसके बारे में पर्याप्त नहीं कहा जा सकता कि एक गाँव के लिए एक नानबाई कितना महत्वपूर्ण हो सकता है। घर की महिला अपनी बेटी की सगाई के अवसर पर अवश्य ही कचौड़ियाँ तैयार करती है। केक तथा ‘बोलिनहास’ क्रिसमिस तथा अन्य उत्सवों के लिए नितांत आवश्यक है। इसी प्रकार गांव में नानबाई की भट्ठी नितांत आवश्यक है।
The baker or bread-seller of those days had a peculiar dress known as the kabai. It was a single-piece long frock reaching down to the knees. In our childhood we saw bakers wearing a shirt and trousers which were shorter than full–length ones and longer than half pants. Even today, anyone who wears a half pant which reaches just below the knees invites the comment that he is dressed like a pader!
उन दिनों बेकर या डबलरोटी बेचने वालों की पोशाक विशेष हुआ करती थी जो ‘कबाई’ के रूप में प्रसिद्ध थे। यह कपड़े के एक टुकड़े की लंबी फ्रॉक होती थी जो घुटनों तक जाती थी। अपने बचपन के दिनों में हम बेकरों को ऐसे कमीज तथा पाजामें पहने देखते थे जो पूरी लंबाई की अपेक्षा छोटे तथा निकरों की लंबाई की अपेक्षा लंबे होते थे । यहाँ तक कि आज भी, कोई ऐसा व्यक्ति जो निकर पहनता है जो घुटनों से नीचे जाती है, वह इस आलोचना को बुलावा देता है कि उसने एक ‘पादर’ की भाँति पोशाक पहन रखी है।
The baker usually collected his bills at the end of the month. Monthly accounts used to be recorded on some wall in pencil. Baking was indeed a profitable profession in the old days. The baker and his family never starved. He, his family and his servants always looked happy and prosperous. Their plump physique was an open testimony to this. Even today any person with a jackfruit-like physical appearance is easily compared to a baker.
बेकर प्रायः अपने बिल की राशि महीने के अंत में इकट्ठा किया करता था। मासिक हिसाब-किताब किसी दीवार पर पेंसिल से नोट कर दिया जाता था। पुराने दिनों में डबलरोटी बनाना वास्तव में एक लाभकारी व्यवसाय था । बेकर तथा उसका परिवार कभी भी भूखे नहीं मरते थे। वह उसका परिवार तथा उसके नौकर सदा प्रसन्न तथा खुशहाल दिखाई देते थे। उसका गोल-मटोल शरीर इसका एक सार्वजनिक प्रमाण था । यहाँ तक कि आज भी कोई व्यक्ति जिसकी शारीरिक आकृति जैकफ्रूट (एक उष्णकटिबंधीय फल ) की तरह होती है उसकी बेकर के साथ आसानी से तुलना की जाती है।
II : COORG
–Lokesh Albrol
Coorg is coffee country, famous f or its rainforests and species.
कुर्ग कॉफ़ी का प्रदेश है, अपने मसालों और सदाबहार वनों के लिए प्रसिद्ध ।
MIDWAY between Mysore and the coastal town of Mangalore sits a piece of heaven that must have drifted from the kingdom of god. This land of rolling hills is inhabited by a proudrace of martial men, beautiful women and wild creatures.
मैसूर तथा मंगलौर के तटवर्ती नगर के मध्य मार्ग में स्वर्ग का एक टुकड़ा स्थित है जो देवता के राज्य से अलग हो गया है। लहरदार पहाड़ियों की यह भूमि गर्ववाली जाति के युद्ध–प्रिय लोगों, सुन्दर स्त्रियों तथा जंगली जंतुओं द्वारा बसी हुई है।
Coorg, or Kodagu, the smallest district of Karnataka, is home to evergreen rainforests, spices and coffee plantations. Evergreen rainforests cover thirty percent of this district. During the monsoons, it pours enough to keep many visitors away. The season of joy commences from September and continues till March. The weather is perfect, with some showers thrown in for good measure. The air breathes of invigorating coffee. Coffee estates and colonial bungalows stand tucked under tree canopies in prime corners.
कुर्ग, या कोदागू, जो कर्नाटक का सबसे छोटा जिला है, वह सदाबहार वर्षा वनों, गर्म मसालों तथा कॉफी के बगानों का घर है। मानसून के दौरान, यहाँ इतनी अधिक वर्षा होती है कि बहुत–से दर्शक दूर रहते हैं। प्रसन्नता की ऋतु सितम्बर से आरम्भ होती है और मार्च तक रहती है। मौसम अच्छा रहता है, और कुछ बौछारें अच्छाई करती हैं। वायु कॉफी के पेड़ों को शक्ति प्रदान करती है। काफी एस्टेट्स तथा औपनिवेशकों के बंगले मुख्य कोनों में वृक्षों की छतरियों के नीचे लिपटे रहते हैं।
The fiercely independent people of Coorg are possibly of Greek or Arabic descent. As one story goes, a part of Alexander’s army moved south along the coast and settled here when return became impractical. These people married amongst the locals and their culture is apparent in the martial traditions, marriage and religious rites, which are distinct from the Hindu mainstream. The theory of Arab origin draws support from the long, black coat with an embroidered waist belt worn by the Kodavus. Known as kuppia, it resembles the kuffia worn by the Arabs and the Kurds.
कुर्ग के प्रचण्ड स्वतंत्र लोग संभवतः यूनानी या अरब वंश के हैं। जैसा कि एक कहानी प्रचलित है, सिकन्दर की सेना की एक टुकड़ी तट के साथ-साथ दक्षिण दिशा में बढ़ी और वहाँ बस गई जब वापसी अव्यावहारिक हो गई। इन लोगों ने स्थानीय लोगों के बीच विवाह कर लिए और उनकी संस्कृति युद्ध – प्रिय प्रथाओं, विवाह तथा धार्मिक रीति–रिवाजों से स्पष्ट दिखाई देती है, जो हिन्दुओं की मुख्यधारा से अलग है। अरब मूल का सिद्धांत लंबे काले कोट से समर्थन प्राप्त करता है जिसकी कमर की पट्टी कशीदा वाली थी, जो कोदावसों द्वारा पहने जाते थे। कुपिया के रूप में जाने–जाने वाले, यह कुफिया से मिलते-जुलते हैं, जो अरब लोगों तथा कुर्दों द्वारा पहने जाते थे।
Coorgi homes have a tradition of hospitality, and they are more than willing to recount numerous tales of valour related to their sons and fathers. Coorg Regiment is one of the most decorated in the Indian Army, and the first Chief of Indian Army, General Cariappa, was a Coorgi. Even now, Kodavus are the only people in India permitted to carry firearms without a licence.
कुर्गी घरानों की अतिथि सत्कार की प्रथा है, और वे इच्छा से भी अधिक वीरता की अनेक गाथाओं को सुनाते हैं जो उनके बेटों तथा पिताओं से संबंधित हैं। कुर्ग रेजमेंट भारतीय सेना की अत्यधिक अलंकृत रेजमेंटों में से एक है और भारतीय सेना का पहला चीफ, जनरल कैरियप्पा, एक कुर्गी था। अब भी, कोदावस भारत में केवल ऐसे लोग हैं जिन्हें बिना लाइसेंस के बन्दूकें रखने की स्वीकृति है ।
The river Kavery, obtains its water from the hills and forests of Coorg. Mahaseer–a large freshwater fish-abound in these waters. Kingfishers dive for their catch, while squirrels and langurs drop partially eaten fruit for th e mischief of enjoying the splash and the ripple effect in the clear water. Elephants enjoy being bathed and scrubbed in the river by their mahouts.
कावेरी नदी, कुर्ग की पहाड़ियों तथा वनों से अपना जल प्राप्त करती है, महासीर-ताजे जल की एक बड़ी मछली – इन पानियों में प्रचुर मात्रा में हैं। किंगफिशर पक्षी मछली पकड़ने के लिए गोता लगाते हैं, जब कि गिलहरियाँ तथा लंगूर कुछ खाए हुए फलों को साफ जल में शरारत के लिए गिराते हैं (ताकि) वे पानी के उछाल तथा लहरों के प्रभाव का आनन्द ले सकें। हाथी नदी में अपने महावतों द्वारा स्नान कराए जाने तथा रगड़े जाने का आनन्द लेते हैं।
The most laidback individuals become converts to the life of high–energy adventure with river rafting, canoeing, rappelling, rock climbing and mountain biking. Numerous walking trails in this region are a favourite with trekkers.
Birds, bees and butterflies are there to give you company. Macaques, Malabar squirrels, langurs and slender loris keep a watchful eye from the tree canopy. I do, however, prefer to step aside for wild elephants.
अधिकांश निश्चिंत व्यक्ति नदी में बेड़े के खेने, नाव–चालन, रस्सी से पहाड़ी से नीचे उतरने, चट्टान पर चढ़ने तथा पहाड़ पर साइकिल चलाने के उच्च शक्ति साहस के साथ जीवन की खिलवाड़ें करते हैं। इस क्षेत्र में अनेक पगडंडियाँ पैदल चलने वालों के लिए प्रिय हैं।
यहाँ पक्षी, मधुमक्खियाँ तथा तितलियाँ तुम्हारा साथ देती हैं। मध्यम आकार का एक बन्दर मालाबारी गिलहरियाँ, लंगूर तथा पतली लोरिस वृक्षों की छतरी से चौकसी रखती हैं। फिर भी मैं जंगली हाथियों के लिए दूर रहना बेहतर समझता हूँ ।
The climb to the Brahmagiri hills brings you into a panoramic view of the entire misty landscape of Coorg. A walk across the rope bridge leads to the sixty-four-acre island of Nisargadhama. Running into Buddhist monks from India’s largest Tibetan settlement, at nearby Bylakuppe, is a bonus. The monks, in red, ochre and yellow robes, are amongst the many surprises that wait to be discovered by visitors searching for the heart and soul of India, right here in Coorg.
ब्रह्मगिरी पहाड़ियों पर चढ़ाई कुर्ग व सम्पूर्ण धूलभरे भू–दृश्य की विस्तृत झाँकी प्रदान करती है। रस्सी के पुल के पार की सैर तुम्हें निसर्गधाम के द्वीप की 64 एकड़ भूमि के पास ले जाती है। बाईलेकूप के पास भारत की सबसे बड़ी तिब्बतन बस्ती से बौद्ध भिक्षुओं को जाना, बड़ी महत्व की बात है । भिक्षु, जो लाल, गेरू तथा पीले वस्त्रों में होते हैं, अनेक आश्चर्यों में से हैं जो पर्यटकों द्वारा खोजे जाने की प्रतीक्षा करते हैं जो ठीक कुर्ग में यहाँ पर भारत के मन तथा आत्मा की खोज करते हैं।
III. TEA FROM ASSAM
–Arup Kumar Datta
Pranjol, a youngster from Assam, is Rajvir’s classmate at school, in Delhi. Pranjol’s father is the manager of a tea-garden in Upper Assam and Pranjol has invited Rajvir to visit his home during the summer vacation.
प्रांजोल, आसाम का एक छोटा बालक, दिल्ली में राजवीर के स्कूल में सहपाठी है। प्रांजोल के पिता अपर आसाम में एक चाय के बाग के मैनेजर हैं और प्रांजोल ने राजवीर को गर्मियों की छुट्टियों में अपने घर आने के लिए आमंत्रित किया है।
“Chai-garam……garam-chai,” a vendor called out in a high-pitched voice.
He came up to their window and asked, “Chai, sa’ab?”
“Give us two cups, ” Pranjol said.
They sipped the steaming hot liquid. Almost everyone in their compartment was drinking tea too.
एक विक्रेता ने ऊँची आवाज में “चाय गर्म, गर्म चाय” के लिए आवाज दी।
वह उनकी खिड़की तक आया और कहा, “चाय साहिब?”
प्रांजोल ने कहा, “हमें दो कम चाय दीजिए।”
उन्होंने भाप निकलते हुए गर्म द्रव्य को पीया । उनके डिब्बे में लगभग प्रत्येक व्यक्ति चाय पी रहा था।
“Do you know that over eighty crore cups of tea are drunk every day throughout the world?” Rajvir asked.
“Whew!” exclaimed Pranjol. “Tea really is very popular. “
The train pulled out of the station. Pranjol buried his nose in his detective book again. Rajvir too was an ardent fan of detective stories, but at the moment he was keener on looking at the beautiful scenery.
राजवीर ने कहा, “क्या आप जानते हैं कि सारे संसार में हर रोज 800,000,000 चाय के प्याले पिए जाते हैं?”
“क्या?” प्रांजोल ने कहा । “चाय वास्तव में बड़ी लोकप्रिय है। “
गाड़ी ने प्लेटफार्म छोड़ा। प्रांजोल ने पुनः अपनी नाक जासूसी पुस्तक में लगा दी। राजवीर भी जासूसी कहानियों का उत्साही, अनन्य अनुरागी था, किन्तु उस क्षण वह सुन्दर दृश्य को देखने का प्रबल इच्छुक था ।
It was green, green everywhere. Rajvir had never seen so much greenery before. Then the soft green paddy fields gave way to tea–bushes.
हर जगह हरियाली ही हरियाली थी । राजवीर ने इससे पहले इतनी हरियाली कभी नहीं देखी थी। फिर कोमल हरे धान के खेतों का स्थान चाय की झाड़ियों ने ले लिया।
It was a magnificent view. Against the backdrop of densely wooded hills a sea of tea–bushes stretched as far as the eye could see. Dwarfing the tiny tea plants were tall sturdy shade–trees and amidst the orderly rows of bushes busily moved doll–like figures. In the distance was an ugly building with smoke billowing out of tall chimneys.
यह एक शानदार दृश्य था । सघनवनीय पहाड़ियों की पृष्ठभूमि में चाय की झाड़ियों का सागर था जो इतनी दूर तक फैला हुआ था जितनी दूर तक आँखें उसे देख सकती थीं। ऊँचे मजबूत छायादार वृक्ष छोटे-छोटे चाय के पौधों को नाटा बना रहे थे और झाड़ियों की व्यवस्थित पंक्तियों के बीच गुड़ियों के समान मूर्तियाँ व्यस्त रूप से चल रही थी। दूरी पर एक भद्दी इमारत थी जिसकी ऊँची चिमनियों से धुआँ निकल रहा था।
“Hey, a tea-garden !” Rajvir cried excitedly.
Pranjol, who had been born and brought up on a plantation, didn’t share Rajvir’s excitement.
‘हे, यह चाय का बाग है।’ राजवीर उत्सुकता से चिल्लाया।
प्राजोल, जिसका जन्म तथा पालन–पोषण बाग में हुआ था, उसने राजवीर की उत्सुकता में भाग नहीं लिया।
“Oh, this is tea-country now,” he said. “Assam has the largest concentration of plantations in the world. You will see enough gardens to last vou a lifetime!”
“I have been reading as much as I could about tea,” Rajvir said, “No one really knows who discovered tea but there are many legends.”
“What legends?”
उसने कहा, “ओह, यह अब एक चाय का देश है। असम में संसार में बगानों का सबसे बड़ संकेन्द्रण है। तुम बहुत से बागों को देखोगे जो आजीवन बने रहेंगे।”
“मैं चाय के बारे में इतना कुछ पढ़ रहा हूँ जितना मैं पढ़ सकता हूँ।” राजवीर ने कहा, “यह कोई नहीं जानता कि किसने चाय की खोज की, किन्तु (इसके बारे में ) बहुत–सी पौराणिक कथाएँ हैं।”
‘कैसी पौराणिक कथाएँ?”
“Well, there’s the one about the Chinese emperor who always boiled water before drinking it. One day a few leaves of the twings burning under the pot fell into the water giving it a delicious flavour. It is said they were tea–leaves. “
“Tell me another!” scoffed Pranjol.
“तो, एक तो चीन के सम्राट के बारे में है जो पीने से पहले पानी को हमेशा उबाल लेता था। एक दिन एक टहनी के कुछ पसे जो वर्तन के नीचे जल रहे थे पानी में गिर गए और उसे स्वादिष्ट रंग दे दिया, ऐसा कहा जाता है कि ये चाय की पत्तियाँ थीं।”
प्रांजोल मजाक करने लगा, “मुझे अन्य कहानी भी बताओ?”
“We have an Indian legend too. Bodhidharma, an ancient Buddhist ascetic, cut off his eyelids because he felt sleepy during meditations. Ten tea plants grew out of the eyelids. The leaves of these plants when put in hot water and drunk banished sleep.
“हमारे यहाँ एक भारतीय पौराणिक कथा भी है। बोधिधर्मा, एक प्राचीन बौद्धिक संन्यासी ने अपनी पलकें काट दीं क्योंकि चिन्तन के दौरान उसे नींद आने लगी। पलकों से चाय के दस पेड़ उग आए। इन पौधों को जब गर्म पानी में डाला गया और पीया गया तो नींद गायब हो गई।
“Tea was first drunk in China,” Rajvir added, “as far back as 2700 B.C.! In fact words such as tea, chai and chini are from Chinese. Tea came to Europe only in the sixteenth entury and was drunk more as medicine than a beverage.”
राजवीर ने कहा, “चाय पहले–पहल चीन में पी जाने लगी। कोई 2700 ई.पू. में, वास्तव में ऐसे शब्द जैसे चाय तथा चीनी, चीनी भाषा से लिए गए हैं। चाय यूरोप में केवल 16वीं शताब्दी में आई और इसे एक पेय पदार्थ के स्थान पर औषधि के रूप में पीया जाता था । “
The train clattered into Mariani junction. The boys collected their luggage and pushed their way to the crowded platform.
Pranjol’s parents were waiting for them.
Soon they were driving towards Dhekiabari, the tea–garden managed by Pranjol’s father.
गाड़ी झनझनाती हुई मैरीअनी जंक्शन पर पहुंची । लड़कों ने अपना सामान समेटा (इकट्ठा किया) और भीड़ वाले प्लेटफार्म पर धक्का देकर अपना मार्ग बनाया।
प्रांजोल के माता–पिता उनकी प्रतीक्षा कर रहे थे।
शीघ्र ही उनकी गाड़ी धेकियाबाड़ी की ओर जा रही थी, उस चाय बाग की ओर जिसका प्रबंध प्रांजोल के पिता करते थे।
An hour later the car veered sharply off the main road. They crossed a cattle–bridge and entered Dhekiabari Tea Estate.
On both sides of the gravel-road were acre upon acre of tea-bushes, all neatly pruned to the same height. Groups of women pluckers, with bamboo baskets on their backs, wearing plastic aprons, were plucking the newly sprouted leaves.
एक घंटा पश्चात् कार मुख्य सड़क से एकदम मुड़ी। उन्होंने पशु-सेतु को पार किया और धेकियाबाड़ी चाय एस्टेट में प्रवेश किया।
बजरी–कंकर की सड़क के दोनों तरफ एकड़ों चाय की झाड़ियाँ थीं, जिन सबको बड़ी सफाई से समान ऊँचाई तक काटा गया था। पत्तों को तोड़ने वाली स्त्रियों के समूह, जिनकी पीठ पर बाँस की टोकरियाँ थीं, प्लास्टिक के ऐप्रन पहने हुए थीं, नये निकले पत्तों को तोड़ रही थीं।
Pranjol’s father slowed down to allow a tractor, pulling a trailer-load of tea–leaves, to pass.
“This is the second-flush or sprouting period, isn’t it, Mr. Barua?” Rajvir asked. “It lasts from May to July and yields the best tea.’
प्रांजोल के पिता ने एक ट्रैकर को गुजर जाने के लिए अपनी गाड़ी को धीमा कर लिया, जो चाय की पत्तियाँ से लदे ट्रेलर को खींच रहा था।
“यह दूसरा प्रवाह या कोंपलों के निकलने का समय है क्या यह नहीं है, मि. बरुआ ? राजवीर ने पूछा, “यह मई से जुलाई तक चलता है और बहुत बढ़िया चाय प्रदान करता है। “
“You seem to have done your homework before coming, ” Pranjol’s father said in surprise.
“Yes, Mr. Barua, ” Rajvir admitted. “But I hope to learn much more while I’m here.”
प्रांजोल के पिता ने आश्चर्य से कहा, “ऐसा प्रतीत होता है कि तुमने आने से पहले अपना गृह कार्य समाप्त कर लिया है।
“हाँ, मि. बरुआ “, राजवीर ने स्वीकार किया । “किन्तु जब मैं यहाँ पर हूँ मैं और अधिक सीखने की आशा करता हूँ।”
NCERT Class 10th Notes in Hindi
📕 | Class 10 English |
📕 | Class 10 Math |
📕 | Class 10 Science |
📕 | Class 10 Social Science |
📕 | Class 10 Hindi |
📕 | Class 10 Sanskrit |
Leave a Reply