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NCERT Sanskrit Ch 8 विचित्राः साक्षी पाठ का हिन्दी अर्थ | Class 10 Sanskrit Chapter 8 Vichitra Sakshi in Hindi

October 11, 2023 by Raja K Leave a Comment

अष्टमः पाठः
विचित्राः साक्षी

अयं पाठः ओम्प्रकाशठक्‍कुरविरचितायाः कथायाः सम्पादितः अंशः अस्ति। इयं कथा बघ्गसाहित्यकार- बंकिमचन्द्रचटर्जीद्वारा न्यायाधीशरूपेण प्रदत्तनिर्णयोपरि आधरिता अस्ति। न्यायकर्तारः सत्यासत्यनिर्णयार्थं यदा-कदा तादृशीनां युक्तीनां प्रयोगं कुर्वन्ति याभिः प्रमाणं विनापि न्यायः स्यात्। अस्यां कथायामपि न्यायाधीशेन तथैव मार्गः आचरितः।

पाठ परिचय – प्रस्तुत अध्याय श्री ओमप्रकाश ठाकुर द्वारा विरचित कथा का सम्पादित अंश है । बंगला के सुविख्यात साहित्यकार बंकिमचन्द्र चटर्जी द्वारा न्यायाधीश रूप में दिये गये फैसले पर यह कथा आधारित है। सत्य और असत्य के निर्णय हेतु न्यायाधीश कभी-कभी ऐसी युक्तियों का प्रयोग करते हैं जिससे साक्ष्य के अभाव में भी न्याय हो सके। इस कथा में भी विद्वान् न्यायाधीश ने ऐसी ही युक्ति का प्रयोग कर न्याय करने में सफलता पाई है। वस्तुत: यह प्रयास सराहनीय है।

कश्चन निर्ध्नो जनः भूरि परिश्रम्य किञ्चिद् वित्तमुपार्जितवान्। तेन वित्तेन स्वपुत्राम् एकस्मिन् महाविद्यालये प्रवेशं दापयितुं सपफलो जातः। तत्तनयः तत्रौव छात्रावासे निवसन् अध्ययने संलग्नः समभूत्। एकदा स पिता तनूजस्य रुग्णतामाकर्ण्य व्याकुलो जातः पुत्रां द्रष्टुं च प्रस्थितः। परमर्थकार्श्येन पीडितः स बसयानं विहाय पदातिरेव प्राचलत्।

पदातिक्रमेण संचलन् सायं समयेऽप्यसौ गन्तव्याद् दूरे आसीत्। ‘निशान्धकारे प्रसृते विजने प्रदेशे पदयात्रा न शुभावहा’, एवं विचार्य स पार्श्वस्थिते ग्रामे रात्रिनिवासं कर्त्तुं किञ्चिद् गृहस्थमुपागतः। करुणापरो गृही तस्मै आश्रयं प्रायच्छत्।

विचित्रा दैवगतिः। तस्यामेव रात्रौ तस्मिन् गृहे कश्चन चौरः गृहाभ्यन्तरं प्रविष्टः। तत्र निहितामेकां मञ्जूषाम् आदाय पलायितः। चौरस्य पादध्वनिना प्रबुद्धोऽतिथिः चौरशड्कया तमन्वधवत् अगृह्णाच्च, परं तदानीमेव किञ्चिद् विचित्रामघटत। चौरः एव उच्चैः क्रोशितुमारभत ‘‘चौरोऽयं चौरोऽयम्’’ इति। तस्य तारस्वरेण प्रबुद्ध: ग्रामवासिनः स्वगृहाद् निष्क्रम्य तत्रागच्छन् वराकमतिथिमेव च चौरं मत्वाऽभर्त्सयन्। यद्यपि ग्रामस्य आरक्षी एव चौर आसीत्। तत्क्षणमेव रक्षापुरुषः तम् अतिथिं चौरोऽयम् इति प्रख्याप्य कारागृहे प्राक्षिपत्।

हिन्दी अनुवाद:- किसी निर्धन व्यक्ति ने अत्यधिक परिश्रम करके कुछ धन इकट्ठा किया। वह अपने पुत्र को किसी महाविद्यालय (कॉलेज) में प्रवेश दिलाने में सफल हो गया। उसका पुत्र वहीं छात्रावास में रहते हुए अध्ययन में जुट गया। एक बार वह पिता पुत्र की बीमारी को सुनकर दुःखी हो गया और पुत्र को देखने के लिए चल पड़ा। परन्तु धन की कमी में सताया हुआ वह बस को छोड़कर पैदल ही चल दिया।

पैदल चलने के कारण सायंकाल के समय में भी वह (अपने ) गन्तव्य से दूर था। रात में अन्धकार के फैलने पर निर्जन (सुनसान ) प्रदेश में पैदल यात्रा (करना) उचित नहीं था । ऐसा विचार कर वह पास में स्थित गाँव में रात्रि-निवास करने के लिए किसी गृहस्थ के यहाँ पहुँच गया। दयालु गृहस्थ ने उसे आश्रय दे दिया।

भाग्य की गति अनोखी है। उसी रात में, उस घर में कोई चोर भीतर घुस आया। वहाँ रखी एक पेटिका को लेकर भाग गया। चोर के पैरों की आवाज सुनकर जागा हुआ अतिथि चोर की आशंका से उसके पीछे दौड़ा और (उसे) पकड़ लिया, किन्तु अनोखी घटना हो गई। चोर ही जोर-जोर से चिल्लाने लगा – ” यह चोर है, यह चोर है” ऐसा। उसकी ऊँची आवाज से जागे हुए ग्रामीण अपने घर से निकलकर वहाँ आए और बेचारे अतिथि को ही चोर मानकर (उसकी ) निन्दा करने लगे। जबकि गाँव का रखवाला ही चोर था । उसी क्षण रक्षा पुरुष ( पुलिस वाले) ने उस अतिथि को ‘यह चोर है’ ऐसा मानकर जेल में डाल दिया।

अग्रिमे दिने स आरक्षी चौर्याभियोगे तं न्यायालयं नीतवान्। न्यायाधीशो बंकिमचन्द्रः उभाभ्यां पृथक्-पृथक् विवरणं श्रुतवान्। सर्वं वृत्तमवगत्य स तं निर्दोषम् अमन्यत आरक्षिणं च दोषभाजनम्। किन्तु प्रमाणाभावात् स निर्णेतुं नाशक्नोत्। ततोऽसौ तौ अग्रिमे दिने उपस्थातुम् आदिष्टवान्। अन्येद्युः तौ न्यायालये स्व-स्व-पक्षं पुनः स्थापितवन्तौ। तदैव कश्चित् तत्रात्यः कर्मचारी समागत्य न्यवेदयत् यत् इतः क्रोशद्वयान्तराले कश्चिज्जनः केनापि हतः। तस्य मृतशरीरं राजमार्गं निकषा वर्तते। आदिश्यतां किम् करणीयमिति। न्यायाधीशः आरक्षिणम् अभियुक्तं च तं शवं न्यायालये आनेतुमादिष्टवान्।

आदेशं प्राप्य उभौ प्राचलताम्। तत्रोपेत्य काष्ठपटले निहितं पटाच्छादितं देहं स्कन्धेन वहन्तौ न्यायाध्किरणं प्रति प्रस्थितौ। आरक्षी सुपुष्टदेह आसीत्, अभियुक्तश्च अतीव कृशकायः। भारवतः शवस्य स्कन्धेन वहनं तत्कृते दुष्करम् आसीत्। स भारवेदनया क्रन्दति स्म। तस्य क्रन्दनं निशम्य मुदित आरक्षी तमुवाच-‘रे दुष्ट! तस्मिन् दिने त्वयाऽहं चोरिताया मञ्जूषाया ग्रहणाद् वारितः। इदानीं निजकृत्यस्य फलं भुडक्ष्‍व। अस्मिन् चौर्याभियोगे त्वं वर्षत्रायस्य कारादण्डं लप्स्यसे’’ इति प्रोच्य उच्चैः अहसत्। यथाकथञ्चिद् उभौ शवमानीय एकस्मिन् चत्वरे स्थापितवन्तौ।

हिन्दी अनुवाद:- अगले दिन वह रखवाला चोरी के आरोप में उसे (अतिथि को ) न्यायालय ले गया। न्यायाधीश बकिमचन्द्र ने दोनों से अलग-अलग विवरण सुना। सारा वृत्तान्त जानकर उन्होंने उसे निर्दोष माना और रखवाले को दोषी । किन्तु प्रमाण (सबूत) की कमी से वे निर्णय नहीं कर सके। इसके बाद उन्होंने उन दोनों को अगले दिन पेश होने के लिए आदेश दिया। अगले दिन उन दोनों ने न्यायालय में अपना-अपना पक्ष पुनः रखा। तभी वहाँ के किसी कर्मचारी ने आकर निवेदन किया, कि यहाँ से दो कोस दूरी पर कोई व्यक्ति किसी के द्वारा मार दिया गया है। उसका पार्थिव शरीर राजमार्ग के निकट है। आदेश दीजिए, क्या किया जाए ? ऐसा । न्यायाधीश ने रखवाले और आरोपी को (वह) शव न्यायालय में लाने का आदेश दिया।

आदेश पाकर दोनों चल दिए। वहाँ पहुँचकर लकड़ी के फट्टे (तखते) पर रखे हुए तथा कपड़े से ढके हुए शरीर (शव) को कंधे पर लादे हुए न्यायालय की ओर चल दिए । रखवाला तन्दुरुस्त शरीर वाला था और आरोप दुर्बल शरीर वाला। भारी शव को कंधे पर ढोना उसके लिए कठिन था। वह भार की पीड़ा से रो रहा था। उसके रोने को सुनकर रखवाला उससे बोला- ‘अरे दुष्ट ! उस दिन तूने मुझे चोरी हुई पेटिका लेने से रोका था। अब अपनी करनी का फल भोग। इस चोरी के मुकद्दमे में तू तीन वर्ष का कारावास पाएगा।’ ऐसा कहकर वह जोर से हँसा । जिस किसी तरह उन दोनों ने शव लाकर एक चौराहे पर रख दिया।

न्यायाधीशेन पुनस्तौ घटनायाः विषये वक्तुमादिष्टौ। आरक्षिणि निजपक्षं प्रस्तुतवति आश्चर्यमघटत् स शवः प्रावारकमपसार्य न्यायाधीशमभिवाद्य निवेदितवान्- मान्यवर! एतेन आरक्षिणा अध्वनि यदुक्तं तद् वर्णयामि ‘त्वयाऽहं चोरितायाः मञ्जूषायाः

ग्रहणाद् वारितः, अतः निजकृत्यस्य फलं भुडक्ष्‍व। अस्मिन् चौर्याभियोगे त्वं वर्षत्रायस्य कारादण्डं लप्स्यसे’ इति।

न्यायाधीशः आरक्षिणे कारादण्डमादिश्य तं जनं ससम्मानं मुक्तवान्। अत एवोच्यते – दुष्कराण्यपि कर्माणि मतिवैभवशालिनः।

 नी¯त युक्तिं समालम्ब्य लीलयैव प्रकुर्वते।।

हिन्दी अनुवाद:- न्यायाधीश ने उन दोनों को फिर से घटना के विषय में कहने का आदेश दिया। आरक्षी (रखवाले) के अपना पक्ष प्रस्तुत करते समय आश्चर्य हो गया- इस शव ने अपनी चादर हटाकर न्यायाधीश को प्रणाम करके निवेदन किया- मान्यवर । इस आरक्षी ने मार्ग में जो कहा वह बताता हूँ- ‘तूने मुझे चुराई गई पेटिका लेने से रोका था, इसलिए अपने किए का फल भोग। इस चोरी के मुकद्दमे में तू तीन वर्ष का कारावास पाएगा’ ऐसा।

न्यायाधीश ने आरक्षी को कारावास का दण्ड सुनाया और उस व्यक्ति (अतिथि/आरोपी) को सम्मान सहित छोड़ दिया। इसलिए कहा गया है-

बुद्धि के वैभव से युक्त लोग कठिन कार्यों को भी नीति और उपाय का सहारा लेकर खेल-खेल में (सरलता से ही) कर लेते हैं।

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